क्रांतिकारी बिरसा मुंडा जयंती

       

                          🏹 जनजातीय गौरव दिवस🏹


आज के झारखंड और पुराने छोटा नागपुर क्षेत्र के उलीहातू गांव में 15 नवंबर 1875 को क्रांतिकारी बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था।


25 वर्ष की आयु में अपनी धर्म-संस्कृति के लिए जो अद्भुत कार्य उन्होंने किया इसके कारण वह सबके प्रिय तथा परमपूज्य बन गए।


उन्होंने रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों का अध्ययन किया ।

 इन ग्रंथों का उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।. धीरे धीरे वे एक आध्यात्मिक महापुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हुए। 





'बिरसाइयत' नाम से उन्होंने एक अध्यात्मिक आंदोलन की शुरुआत की।

 मुंडा - उरांव और अन्य कई समाज के हजारों लोग इस आंदोलन में शामिल होने लगे। 

बिरसा की इस बढ़ती ताकत और प्रभाव से ब्रिटिश सरकार में एक डर पैदा हो गया।



उन्होंने छल कपट से बिरसा मुंडा को हजारिबाग की जेल में कैद कर लिया, लेकिन उन्हें ज्यादा दिन जेल में रख नहीं पाए।

जेल से छूटने के बाद तो बिरसा मुंडा ने अंग्रेज सरकार को उखाड़ फेंकने का दृढ़निश्चय ही किया।


जल, जमीन और जंगल के अधिकारों के लिए उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ एक प्रखर आंदोलन प्रारंभ किया।

इसी संदर्भ में 9 जनवरी 1900 को डोंबारी पहाड़ी पर एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया। 


इस आंदोलन को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने स्ट्रीटफील्ड के नेतृत्व में आंदोलनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई जिसमें हजारों मुंडा बलिदान हो गए।

 यह गोली काण्ड  जालियाँ वाला बाग जैसा हीं भयंकर एवं सुनियोजित हत्याकांड था।


अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को पकड़ने के लिए इनाम घोषित किया कुछ दिनों के बाद अंग्रेज सरकार बिरसा मुंडा को पकड़ने में कामयाब भी हो गई, उनको रांची के जेल में रखा गया। 



9 जून 1900 को संदेहास्पद अवस्था में बिरसा की मृत्यु हो गई ।

ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेज शासन द्वारा विष प्रयोग कर उनकी हत्या कर दीं गई थी।

 

बिरसा मुंडा की जीवन लीला तो समाप्त हो गई परन्तु स्वधर्म, संस्कृति और स्वदेश की रक्षा हेतु जो ज्योति उन्होंने प्रज्वलित की थी, उसी की प्रेरणा से सैकड़ों क्रांतिकारियों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। 


बिरसा मुंडा जनजाति अस्मिता के ऐसे महानायक थे, जिनकी प्रेरणा आज भी हमें राष्ट्रधर्म - संस्कृति के प्रति जागरूक रहने का संदेश देती है।


हम भारत की स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव बड़ी धूमधाम से मना रहे हैं,

 लेकिन यह स्वर्ण क्षण दिखाने में बिरसा मुंडा जैसे हमारे हजारों जनजाति वीरों के बलिदान को हमें जीवंत रखना है तथा प्रेरणा लेनी है।